मध्यप्रदेश की बोलियाँ
बुन्देली
- बुंदेली भारतीय आर्य भाषा परिवार के तहत शौरसेनी अपभ्रंश से पैदा हुई पश्चिमी हिंदी की एक प्रमुख बोती है।
- बुन्देली क्षेत्र – अशोकनगर, दतिया, गुना, शिवपुरी, मरैना, सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना, विदिशा, रायसेन, होशंगाबाद, नरसिंहपुर,सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट आदि।
निमाड़ी
- निमाड़ी बोली शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित हुई है।
- निमाड़ी की पश्चिमी सीमा पर भीली क्षेत्र है।
- निमाड़ी क्षेत्र – बुरहानपुर, खंडवा, खरगौन, धार, देवास, बड़वानी, झाबुआ, इंदौर आदि।
भदावरी
- भदावरी ग्वालियर और चंबल संभाग के कुछ हिस्सों में बोली जाती है।
- राजस्थानी, ब्रज और बुंदेली के मेल से बनी है।
ब्रजभाषा
- ब्रजभाषा खड़ी हिंदी की एक बोली है जो मुख्य रूप से भिंड, मुरेना, ग्वालियर में बोली जाती है।
- इस बोली में सूरदास, मीरा, रसखान जैसे कवियों ने बड़े पैमाने पर साहित्य की रचना की है।
जनजातीय बोलियाँ
- भीली – यह बोली राज्य के रतलाम, धार, झाबुआ, खरगोन और अलीराजपुर जिलों में रहने वाली भील जनजातियों द्वारा बोली जाती है।
- गोंडी – गोंडी बोली छिदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट में रहने वाली गोंड जनजातियों द्वारा बोली जाती है। राज्य के मंडला, डिंडोरी और होशंगाबाद जिलों में।
- कोरकू – यह बोली बैतूल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, खरगोन जिलों के कोरकू आदिवासियों द्वारा बोली जाती है।
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