मध्यप्रदेश के लोकनृत्य
निमाड़ क्षेत्र के लोकनृत्य
गणगौर नृत्य
- यह नृत्य मुख्य रूप से गणगौर उत्सव के नौ दिनों के दौरान किया जाता है।
- यह निमाड़ क्षेत्र में गणगौर के अवसर पर देवता राणुबाई और धनियार सूर्यदेव के सम्मान में की जाने वाली भक्ति का एक रूप है।
- नृत्य दो प्रकार के होते हैं – झालरिया और झेला नृत्य ।
काठी नृत्य
- यह पार्वती की तपस्या से संबंधित मातृ पूजा का नृत्य है।
- मुख्य वाद्ययंत्र – ढाक।
- बाना नामक वेशभूषा (नर्तकों की वेशभूषा नेपाल के महाकाली नृत्य के समान होती है।)
- काठी देव प्रबोधिनी एकादशी से शुरू होकर महाशिवरात्रि पर समाप्त होती है।
- इस्तेमाल किए गए उपकरण को फेफ्रिया भी कहा जाता है।
फेफारिया नृत्य
- फेफारिया नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है।
माडल्या नृत्य
- मांडल्या नृत्य ढोल पर किया जाता है।
- यह नृत्य केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है।
आड़ा खड़ा नृत्य
- निमाड़ क्षेत्र में जन्म, मुडन व विवाह के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है।
- मुख्य वाद्ययंत्र ढोल है।
डंडा नृत्य
- हिंदी महीने के चैत्र वैशाख में प्रदर्शित किया जाता है।
- गणगौर पर्व के अवसर पर।
- यह एक पुरुष नृत्य है।
- प्रमुख वाद्ययंत्र – ढोल और थाली।
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मालवा क्षेत्र के लोकनृत्य
मटकी नृत्य
- सगाई विवाह के अवसर पर मालवा गाँव की महिलाएं मटकी नृत्य करती है।
- प्रारंभ में यह एकल महिला नृत्य था जिसे झेला कहा जाता है।
आड़ा-खड़ा-रजवाड़ी नृत्य
- सभी अवसरों पर किया जाता है।
- लेकिन शादी में मंडप के नीचे रजवाड़ी नृत्य किया जाता है।
कानडा नृत्य
- बुंदेलखंड में यह मूल रूप से धोबी समाज के लोगों द्वारा किया जाता है।
- मुख्य वाद्य – सारंगी, लोटा, ढोलक, इकतारा और मृदंग।
बुंदेलखंड क्षेत्र के लोकनृत्य
सेरा नृत्य
- बुंदेलखंड के श्रावण, भादो में सैरा नृत्य किया जाता है।
- यह पुरुष प्रधान नृत्य है।
- इस नृत्य में ढोलक, टिमकी, मंजीरा, मृदंग और बाँसुरी वाद्य प्रमुख है।
राई नृत्य
- यह नृत्य किसी भी अवसर के लिए विशिष्ट नहीं है।
- मुख्य नर्तकी – बेड़नी।
- यंत्र- मृदंग
बधाई नृत्य
- शादी के मौके पर इसे बधाई देने के लिए प्रदर्शित।
- इस नृत्य में महिला तथा पुरूष दोनों की भूमिका होती है।
- बधाई एक ताल है जिसे ढोलकी या ढसले पर बजाया जाता है।
ढिमरयाई नृत्य
- ढ़ीमर जाति के लोग इस नृत्य को करते हैं, इसलिए इसे ढिमरयाई नृत्य कहा जाता है।
बरेदी नृत्य
- मौनियाँ नृत्य को ही अहीर या बरेदी या दिवारी नृत्य कहते हैं।
- यह पुरुषप्रधान समूह नृत्य है।
बघेलखंड क्षेत्र के लोक नृत्य
बिरहा(अहीराई) नृत्य
- जब अहीर लोग बिरहा नृत्य करते हैं, तो इसे अहीराई कहा जाता है।
- बघेलखंड में सभी जातियों के बीच बिरहा नृत्य लोकप्रिय है। विरहा नृत्य अहीर, तेली, गडरिया, वारी जातियों में विशेष रूप से लोकप्रिय है।
राई नृत्य
- बुदेलखंड की तरह बघेलखंड में वीर राई नृत्य प्रचलित है।
- बेड़नी और मृदंग राई बुदेलखंड में प्रचलित है, जबकि बघेलखंड में ढोलक और नगाड़ी प्रचलित है।
केहरा नृत्य
- केहरा नृत्य में पुरुष और महिला दोनों अलग-अलग शैलियों में नृत्य करते हैं।
- इसकी मुख्य लय कहरवा है।
- नृत्य के दौरान महिलाएं फिरहरी लेती हैं।
दादर नृत्य
- दादर नृत्य किसी विशेष अवसर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है।
- कभी-कभी पुरुष महिला भेष में नृत्य करते हैं।
- कोल, कोटवार, कहार दादर के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, ये जातियों दादर से सम्बंधित है।
- दादर के प्रमुख संगीत वाद्य ढोलक, ठप (Stalled) और शहनाई है।
कलसा नृत्य
- बारात के स्वागत में सिर पर ऊँ रखकर नृत्य करने की परंपरा है।
- अहीर तथा चरवाहों में समान रूप से प्रचलित है।
- द्वार पर स्वागत के बाद नृत्य शुरू होता है।
कमली नृत्य
- कमली नृत्य को साजन-सजना नृत्य भी कहा जाता है।
- कमली में पुरुष और महिला दोनों भाग लेते हैं।
- यह शादी के मौके पर प्रदर्शित किया जाता है।