मध्य प्रदेश की वास्तुकला | 001

मध्य प्रदेश की वास्तुकला

मध्य प्रदेश की रूपंकर कला

मिट्टी के शिल्प

  • झाबुआ, धार, रीवा, मंडला. शहडोल और बैतूल आदि के मिट्टी के शिल्प अपनी व्यक्तिगत विशेषताओं के कारण एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
  • धार, झाबुआ – जानवरों और पक्षियों की आकृति।
  • रीवा, शहडोल – देवी-देवता।
  • बैतूल,मंडला – पशु आकृति।

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खराद कला

  • मध्य प्रदेश में खराद पर लकड़ी को आकार देने की कला अति प्राचीन है।
  • सागोन, दूधी, कदंबसलाई. गुरजेल मेंडला तथा खैर की लकड़ी पर खराद किया जाता है।
  • लाख पापड़ी, राजन बेरजा, गोंद, जिंक पाउडर से रंग बनाए जाते हैं।
  • केवड़ा के पत्ते रंगों में चमक डालते हैं।
  • श्योपुर कला, रीवा और बुधनी घाट खराद कला के पारंपरिक केंद्र है।

तीर-धनुष कला

  • तीर-धनुष, मोर की पंखुड़ी, लोहे, रस्सी आदि से बने होते हैं। शिकार के लिए तीर धनुष बनाए जाते हैं।
  • भील, पहाड़ी कोरवा, कुमार आदि जनजातियाँ धनुष-बाण में दक्ष है।

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  • तीर धनुष भील की पहचान बन गया है। प्रत्येक भील के पास धनुष-बाण होता है।

गुड़िया शिल्प

  • ग्वालियर क्षेत्र में कपड़े, लकड़ी और कागज से बनी गुड़ियों की परंपरा है। यह अपने आकार-प्रकार की सजावटी वेशभूषा और चेहरे के डिजाइन के लिए प्रसिद्ध है।
  • झाबुआ भीली गुड़िया का केंद्र है।

लकड़ी के शिल्प

  • लकड़ी की नक्काशी देवी देवताओं की मूर्तियाँ, घरों के दरवाजे, पट्टो त्रिशूल और अन्य चीजें प्राचीन काल की लकड़ी की कला से देखी जा सकती है।

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  • मध्य प्रदेश के जनजातीय शिला महिया, बेतूल होशंगाबाद, धार और झाबुआ लकड़ी के शिल्प से समृद्ध है।

कंघी कला

  • इन कंघों में कशीदाकारी के सुन्दर कार्य के साथ साथ रत्नों की मीनाकारी और अनेक रूपांकनों से अलंकृत किया जाता है।
  • कंघी कला का श्रेय मुख्यतः बंजारा जाति को ही है।
  • मालवा के उज्जैन, रतलाम, नीमच आदि में कंघी कला का कार्य होता है।

बाँस शिल्प

  • बैतूल, झाबुआ, मंडला आदि जिलों में जनजाति के लोग स्वयं अपने दैनिक जीवन के लिए बॉस से बनी कलात्मक चीजों का निर्माण करते है।

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  • झाबुआ, बैतूल, मंडला में बाँस शिल्प के कई पारंपरिक कलाकार हैं।

पत्ता कला

  • पत्ता शिल्प कलाकार आमतौर पर झाडू बनाने वाले होते हैं।
  • कई जातियों और जनजातियों के पारंपरिक कलाकार अभी भी पत्तों की कोमलता के अनुसार अलग- अलग कला के कार्यों में लगे हुए है।

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ब्लॉक प्रिंट

  • बाग, मनावर, बदनावर, उज्जैन- छिपा जैसे क्षेत्र इसमें पारंपरिक हैं।
  • उज्जैन में वाटिक शिल्प भेरूगढ़ के/में नाम से प्रसिद्ध है।

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धातु हस्तशिल्प

ढोकरा या भरेवा शिल्प

  • बैतूल के आदिवासियों में प्रचलित है।
  • यह मोम-अलौह धातु आधारित मूर्ती शिल्प है।

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मंदसौर की थेवा कला

  • मंदसौर में थेवा कला और अन्य हस्तशिल्प जैसे चादरें और अन्य कपड़ो की बुनाई और बर्तनों पर तामचीनी करना खिलचीपुरा के बुनकरों का मुख्य व्यवसाय है।Rakesh soni ji

चिचली पीतल शिल्प

  • नरसिंहपुर जिले (चिंचली) में पीतल और ताँबे से कलात्मक वस्तुएँ बनाई जाती है।
  • यहाँ मुख्य रूप से बर्तन बनाने का काम होता है जिसमें परात, डेकची और गंज शामिल है।

अगरिया लोह शिल्प

  • अगरिया जनजाति परंपरागत रूप से लौह अयस्क को पिघलाकर उपकरण बनाती है।
  • अगरिया शिल्पी, मंडला, डिंडोरी, शहडोल, सीधी और बालाघाट जिले की रहने वाली है।
  • अगरिया द्वारा तीर, भाले कुल्हाड़ी आदि बनाये जाते है।

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सुपारी शिल्प – रीवा में सुपारी पर मूर्तियाँ बनाई जाती है।
खिलौना शिल्प – सीहोर जिले की बुधना तहसील काष्ठ कला कृतियों के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ लकड़ी के खिलौने बनाये जाते हैं।

लाख शिल्प
  • पेड़ के गोंदिया रस से लाख बनाई जाती हैं।
  • लाख एक जाति है जो लाख का काम करती है।
  • लाख से कलात्मक खिलौने, सजावटी पशु पक्षी आदि बनाये जाते है।
  • कलात्मक वस्तुएँ बनाई जाती हैं लाख की चूड़ियाँ, कलात्मक खिलौने, मेकअप बॉक्स, कार्टून लाख के पशु पक्षी आदि बनाए जाते हैं।
  • लाख के पारंपरिक केंद्रों में उज्जैन, इंदौर, रतलाम, मंदसौर, महेश्वर शामिल हैं।
पत्थर की मूर्ति
  • मंदसौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर और रतलाम जिले इसके केंद्र कहे जा सकते हैं।
  • भेड़ाघाट तथा ग्वालियर पौराणिक देवी-देवताओं की संगमरमर की मूर्तियाँ बनाने का प्रमुख केंद्र है।
  • मंडला जिले में रहने वाले आदिवासी गोंड, बेगा, प्रधान, धीमा, भूमिया और बहरिया टेराकोटा शिल्प की उत्कृष्ट कृतियों के लिए प्रसिद्ध है।

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मध्य प्रदेश के लोक गीत

मध्यप्रदेश के नाटक

मध्य प्रदेश की लोक चित्रकला

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