मध्य प्रदेश के लोक गीत | 001

मध्य प्रदेश के लोक गीत

मध्य प्रदेश के लोक गीत : निमाड़ क्षेत्र 
निर्गुणीया
  • मालवा क्षेत्र और निमाड़ क्षेत्र के कुछ हिस्सों में प्रदर्शन किया जाता है।
  • इसमें कबीर, मीरा, रेदास, ब्रह्मानंद, दाद्र व सूर आदि भावों वाले भजन लोक में सर्वाधिक प्रचलित हैं।
  • इसमें आमतौर पर निर्गुणीया का भजन गाते हैं वाद्य यंत्र इकतारा और झाँझ, मृदंग द्वारा।
  • निर्गुण या गायन को नारद भजन भी कहा जाता है।

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कलगी तुर्रा

  • कलगी तुर्रा एक प्रतिस्पर्धी लोक गायन शैली है।
  • कलगी तुर्रा चंग की थाप पर रात भर गाया जाता है।
  • इसके दो अखाड़े है एक कलगी अखाड़ा है और दूसरा तुर्रा अखाडा, तुर्रा अखाड़े के गुरु उस्ताद कहलाते है।

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संत सिंगाजी गीत

  • संत सिंगाजी 15वीं शताब्दी के निर्गुण संत कवियों में अग्रणी हैं।
  • सिंगाजी ने स्वयं मृदंग और झाँझ के साथ उच्च स्वर में भजन गाने की शैली विकसित की।

मसाण्या (कायाखी) गीत

  • निमाड़ के मृत्यु गीतों को मसाण्या या कयाखों के गीत कहा जाता है।
  • यह झाँझ, मृदंग और इकतारे के साथ समूहों में गाए जाते हैं।
  • मसाण्या या कायाखो गीता में शरीर और आत्मा को क्रमश वर और वधू माना जाता है।
  • यह अक्सर मृत्यु के अवसर पर गाया जाता है।

नाथपंथी गीत

  • नाथ जोगी, भगवा वस्त्र पहनकर हाथ में गाते हुए रेकड़ी या बाजा बजाते हुए गाँव में प्रकट होते हैं।
  • नाथ जोगी आज भी प्राया, गोरख, कबीर या भर्तृहरि गाथा गाते हुए पाए जाते हैं।

फाग गायन

  • होली के अवसर पर फाग गीत गाए जाते हैं।
  • प्रायः कृष्ण और राधा पर केंद्रित होते हैं।

गरबा गीत – नवरात्रि में गरबे की स्थापना के साथ ही ताली की थाप पर महिलाएँ गरबा गीत गाती है।
गरबी गीत

  • गरबी सामान्य रूप से लोक गायन है।
  • इसे झाँझ, मृदंग के साथ गाया जाता है।

गवलन गीत

  • गवलन गीत, कृष्ण लीला गीत है।
  • रासलीला में मुख्य रूप से गवलन गीतों का प्रयोग किया जाता है।
  • गवलन गीत पुरुष वर्ग के लोगो द्वारा झाँझ, मृदंग और ढोलक के साथ गाया जाता है।

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मध्य प्रदेश के लोक गीत : मालवा क्षेत्र

भरथरी गायन

  • इसे मालवा में नाथ संप्रदाय के लोग चिंकारा पर गाते हैं।
  • चिंकारा को बालों से बने धनुष से बजाया जाता है।

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निर्गुणी भजन

  • निर्गुण लोकगीत गायन परंपरा बहुत पुरानी है।
  • निर्गुण भजनों में कबीर की आध्यात्मिकता का आभास होता है।
  • निर्गुणी भजने में श्री पहलादा टिपाना का समूह प्रसिद्ध है।

बरसाती-बारता गीत

  • बरसाती-बारता मौसमी गीत हैं।
  • बरसात के मौसम में बरसाती बरसाता सुनाया और गाया जाता है, इसलिए इसका नाम बरसाती बरसाता पड़ा।

संजा गीत

  • संजा गीत मूल रूप से किशोरियों की पारंपरिक गायन पद्धति है।
  • पितृपक्ष में किशोरियों संजा पर्व मनाती है।
  • गोबर और फूलों के पत्तों से संजा की सुंदर आकृति बनाती हैं।

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हीड़ गीत

  • इस गीत को श्रावण मास में मालवा में गायन की प्रथा है।
  • यह अहीरों की लोक कथा है, जो कृषि संस्कृति की भीतरी परतों का सूक्ष्म विवरण देती है।
  • इस अवसर पर ग्यारस माता की कथा भी गाई जाती है।

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मध्य प्रदेश के लोक गीत : बुंदेलखंड क्षेत्र

आल्हा गायन

  • आल्हा गायन वीर रस प्रधान कविता है।
  • आल्हा की रचना लगभग 1000 वर्ष पूर्व लोक कवि जगनिक ने की थी।
  • आल्हा खण्ड की मूल भाषा बुंदेली है।

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फाग गीत

  • होली के अवसर पर फाग गायन होता है।
  • ठाकुर फाग, इसुरी फाग, राय फाग महत्वपूर्ण हैं।
  • ठाकुर फाग में मृदंग, टिमकी और मंजीरा बजाया जाता है।

भोला गीत (बंदुलिया/ तमरेता)

  • यह गीत अक्सर एक महिला समूह द्वारा शिवरात्रि, बसंत पंचमी, मकर सक्रांति के अवसर पर श्रावण मास में बिना किसी वाद्य यंत्र के गाया जाता है।
  • गाने अक्सर प्रश्नोत्तरी शेली में होते हैं, उनमें दोहराव भी होता है भोला गीत शिव और शक्ति से संबंधित है।

बेरायटा गायन

  • .वह सहायक गायक मुखिया का साथ देते हैं और कथा को आगे बढ़ाने के लिए हुंकार देते हैं साथ ही कुछ संवाद भी बोलते है।

देवरी गायन

  • देवरी गायन दोहों पर केंद्रित है।
  • अहीर, गवली, वरेदी, घोसी आदि जातियों में देवरी गायन और नृत्य की परंपरा है।

जगदेव का पुवारा गीत (देवगीत)

  • यह मूल रूप से भजन शैली में है जो देवी की स्तुति से संबंधित एक लंबी कथा है जिसे भक्त गाते हैं।
  • बुंदेलखंड क्षेत्र में हिन्दी महीने के चैत्र तथा वैशाख में गाया जाता है।

बसदेवा गायन

  • यह एक पारंपरिक गायक जाति द्वारा गाया जाता है जिसे हरबोले कहा जाता है।
  • श्रवण कुमार की कहानी गाए जाने पर उन्हें सरमन गायक के नाम से भी जाना जाता है।
मध्य प्रदेश के लोक गीत : बघेलखंड क्षेत्र

बिरहा गायन

  • बिरहा की गायन शैली पूर्णतः मौलिक और मधुर है।
  • खेत तथा सुनसान रास्तों में अक्सर बिरहा को सवाल जवाब के तोर पर गाया जाता है।

बिदेशिया गायन

  • गड़रिया, तेली, कोटवार जाति के लोगों को विशेष गायन में विशेषज्ञता प्राप्त है
  • बिदेशिया आमतौर पर जंगल में या एकांत रात में गाया जाता है।

फाग गायन

  • बघेलखंड में फाग गायन की परंपरा सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण है।
  • यहाँ नगाड़ों पर फाग गायन किया जाता है।
  • फाग गायन में पुरुषों की प्रमुख भागीदारी होती है।
मध्य प्रदेश के लोक गीत : अन्य लोक गीत

लावणी गायन

  • मुख्य रूप से मालवा निमाड़ अंचल में गाया जाता है।
  • यह आमतौर पर सुबह के समय गाया जाता है।
  • यह एक निर्गुण दार्शनिक गीत है जिसे जन-आधारित जीवन शैली के रूप में भी जाना जाता है।

पंडवानी गीत – पड़वानी गीत मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के शहडोल, अनूपपुर और बालाघाट जिलों में गाए जाते है।

ढोला मारु गीत

  • मालवानिमाड और बुंदेलखंड में ढोला मारु गीत गाए जाते हैं।
  • यह नरवर राजकुमार ढोला और पूगल राजकुमारी मारू की प्रेम कहानी है।

बाँस गीतमध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ से जुड़े जिलों में बाँस गीत गाए जाते हैं। ये गीत मोरध्वज और कर्ण की गाथाओं पर आधारित महिला गीत है।

 

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