राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
पृष्ठभूमि
- 1999 में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं विकास के कार्यों को गति देने के लिये एक नये जनजातीय मंत्रालय की स्थापना की गयी।
- यह महसूस किया गया कि अनुसूचित जनजातियों से संबंधित सभी योजनाओं में समन्वय स्थापित करने के लिये जनजातीय कल्याण आयोग का होना आवश्यक है। चूंकि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के लिए इस भूमिका को निभाना प्रशासनिक दृष्टि से संभव नहीं था।
- इस प्रकार अनुसूचित जनजातियों के हितों की अधिक प्रभावी तरीके से रक्षा के लिये यह प्रस्ताव रखा गया कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं जनजाति आयोग का गठन किया जाए। तत्पश्चात विभाजन कर दोनों के लिये पृथक्-पृथक् आयोगों की स्थापना की गयी।
- इसकी स्थापना अंतत: 2003 के 89वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा की गयी। इसके लिये संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन किया गया तथा उसमें एक नया अनुच्छेद 338-क जोड़ा गया।
- वर्ष 2004 से राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अस्तित्व में आया।
परिचय
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) की स्थापना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और संविधान (89वाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित कर की गई थी, अत: यह एक संवैधानिक निकाय है।
- अनुच्छेद 338A अन्य बातों के साथ-साथ NCST को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार को किसी अन्य आदेश के तहत STs को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्ति प्रदान करता है।
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संरचना
- इस आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन पूर्णकालिक सदस्य (एक महिला सदस्य सहित) शामिल हैं।
- सदस्यों में कम-से-कम एक सदस्य महिला होनी चाहिये।
- कार्यकारी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और NCST के सदस्यों का कार्यकाल पदभार ग्रहण करने की तिथि से लेकर तीन वर्ष तक का होता है।
- सदस्य दो से अधिक कार्यकाल के लिये नियुक्ति के पात्र नहीं होते हैं।
- इस आयोग के अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री तथा उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है, जबकि अन्य सदस्यों को भारत सरकार के सचिव पद का दर्जा दिया गया है।
- इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक सीलबंद आदेश द्वारा की जाती है।
- उनकी सेवा शर्तें एवं कार्यकाल भी राष्ट्रपति द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैं।
- नियमानुसार, इनका कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
कार्य
- अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन पर निगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के कार्यकरण का मूल्यांकन करे;
- अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने के सम्बन्ध में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जांच करे;
- अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करे;
- उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवर्ष और ऐसे अन्य 3 समयों पर जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करे;
- ऐसी रिपोर्टों में उन उपायों के बारे में, जो रक्षोपायों के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा किए जाने चाहिए तथा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के बारे में सिफारिश करे, और;
- अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और विकास तथा उन्नयन के संबंध में ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करे जो राष्ट्रपति, संसद, द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
2005 में राष्ट्रपति ने आयोग के निम्नलिखित कुछ अन्य कार्य निर्धारित किए
- वन क्षेत्र में रह रही अनुसूचित जनजातियों को लघु वनोपज पर स्वामित्व का अधिकार देने संबंधी उपाय।
- कानून के अनुसार जनजातीय समुदायों के खनिज तथा जल संसाधनों आदि पर अधिकार को सुरक्षित रखने संबंधी उपाय।
- जनजातियों के विकास तथा उनके लिए अधिक वहनीय आजीविका रणनीतियों पर काम करने संबंधी उपाय।
- विकास परियोजनाओं द्वारा विस्थापित जनजातीय समूहों के लिए सहायता एवं पुनर्वास उपायों की प्रभावकारिता बढ़ाने संबंधी उपाय।
- जनजातीय लोगों का भूमि से बिलगाव रोकने के उपाय तथा उन लोगों का प्रभावी पुनर्वासन करना जो पहले ही भूमि से विलग हो चुके हैं।
- जनजातीय समुदायों की वन सुरक्षा तथा सामाजिक वानिकी में अधिकतम सहयोग एवं संलग्नता प्राप्त करने संबंधी उपाय।
- पेसा अधिनियम, 1996 का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने संबंधी उपाय।
- जनजातियों द्वारा झूम खेती के प्रचलन को कम करने तथा अंततः समाप्त करने संबंधी उपाय, जिसके कारण उनके लगातार अशक्तीकरण के साथ भूमि तथा पर्यावरण का अपरदन होता है।
प्रतिवेदन
- आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है।
- यदि आवश्यक समझा जाता है तो समय से पहले भी आयोग अपना प्रतिवेदन दे सकता है।
- राष्ट्रपति ऐसी सभी रिपोर्टों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और उनके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रस्थापित कार्रवाई तथा याद काई एसी सिफारिश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
- जहां कोई ऐसी रिपोर्ट या उसका कोई भाग, किसी ऐसे विषय से संबंधित है, जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है तो ऐसी रिपोर्ट की एक प्रति उस राज्य के राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा।
शक्तियाँ
१. आयोग को, किसी विषय का अन्वेषण करते समय या किसी परिवाद के बारे में जांच करते समय, विशिष्टता निम्नलिखित विषयों के संबंध में, वे सभी शक्तियां होंगी, जो वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय को प्राप्त हैं, अर्थात्:
(क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अध्यपेक्षा करना;
(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
(च) कोई अन्य विषय, जो राष्ट्रपति नियम द्वारा अवधारित करे।
२. संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।